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” हिंदी फिल्मों के सफल निर्देशक सुभाष घई “

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-जगमोहन सिंह बरहोक की कलम से

24 जनवरी 1945 को नागपुर में जन्मे घई ने दिल्ली में अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की। FTII पुणे से निकले घई अभिनेता बनने के लिए बम्बई पहुंचे। उन्होंने “तकदीर” (1967) “आराधना” (1970) “उमंग” (1970) “शेरनी” और “गुमराह” जैसी कुछ फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाई। लेकिन उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली फिर पटकथा लेखन और निर्देशन की ओर रुख किया। उन्होंने 1970 में रेहाना से शादी की और उसका नाम बदलकर मुक्ता रख दिया। घई के प्रोडक्शन हाउस मुक्ता आर्ट्स ने 1976 में निर्देशक के रूप में “कालीचरण” से शुरुआत करते हुए कई फिल्में बनाईं। शत्रुघ्न सिन्हा अभिनीत इस फिल्म ने कमाल कर दिया और घई पर सोने की बरसात कर दी। इसके बाद एक और ब्लॉकबस्टर “विश्वनाथ” आई। वाराणसी में आयोजित हुए और एक स्टेज शो के दौरान मुझे कुछ समय के लिए इस फिल्म के बिहारी बाब बाबू से स्टेज के पीछे कुछ बात करने का अवसर मिला यह फिल्म अपने संवाद “जली को आग कहते हैं, बुझी को रख कहते हैं, जिस राख से बारूद बने उसे विश्वनाथ कहते हैं” के लिए याद की जाती है जो बहुत लोकप्रिय हुआ.

सुभाष घई ने ऋषि कपूर, नीतू सिंह, सिमी ग्रेवाल को “कर्ज” (1980) में कास्ट किया, जो एक और संगीतमय फिल्म थी शुरू में फिल्म को सफल नहीं बताया गया लेकिन बाद में फिल्म के चाहने वाल बढ़ गये । उन्होंने “हीरो” (1983) “कर्मा” (1986), “राम लखन” (1989) और “त्रिमूर्ति” (1995) में जैकी श्रॉफ के करियर को सजाने सँवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी “विधाता” (1982) भी एक सफल फिल्म थी, जिसके बाद “मेरी जंग” (1985) और “कर्मा” (1986) आईं। उन्होंने अपने “सौदागर” (1991) में दो कट्टर प्रतिद्वंद्वियों दिलीप कुमार और राज कुमार को कास्ट किया; दोनों को आखिरी बार “पैगाम” (1959) में देखा गया था।

उन्होंने 1970 के दशक के अंत में अपने भाई की बेटी मेघना को गोद लिया। वह ‘व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट’ नामक एक अभिनय संस्थान चलाती हैं, जिसकी अध्यक्ष के रूप में दुनिया भर में मान्यता है। “सुभाष घई ने कई लोगों को स्टारडम स्वाद चखाया इनमें जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर प्रमुख हैं। कुछ लोगों द्वारा निर्देशक सुभाष घई को राज कपूर के बाद दूसरा ‘शो-मैन’ होने का श्रेय दिया जाता है।

घई ने “खलनायक” में , जिसके नायक संजय दत्त थे, माधुरी दीक्षित को कॉन्ट्रोवर्सिअल गीत “चोली के नीचे क्या है” गाते हुए कास्ट किया।यह एक बेहद्द लचर लेकिन बॉक्स ऑफिस पर सफल और पंजाब में सुपर-डुपर हिट फिल्म रही। “ताल” (1999), “यादें” (2001) और “किसना” (2005) उनकी अन्य फिल्में हैं 40 से अधिक वर्षों के करियर में घई ने निर्देशक के रूप में कई हिट फिल्में दीं। ऐतराज़ (2004),इकबाल (2005), 36 चाइना टाउन (2006) बतौर निर्माता उनकी कुछ फिल्में हैं

घई अपनी पत्नी मुक्ता, मेघना घई पुरी और 2000 में पैदा हुई बेटी मुस्कान के साथ रहते हैं। घई को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिसमें “सौदागर” (1992) के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार, “परदेस” (1998) के लिए सर्वश्रेष्ठ पटकथा और “इकबाल” (2006) के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं।भारतीय सिनेमा में उनके सराहनीय योगदान के लिए उन्हें IIFA (2015) और ‘स्क्रीन लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ (2017) से भी सम्मानित किया गया। बॉलीवुड में बीमा पॉलिसी शुरू करने वाले घई पहले व्यक्ति थे और उन्होंने बैंकों को फिल्म निर्माताओं को वित्तीय मदद करने के लिए भी प्रेरित किया।

Jagmohan Singh Barhok

Leading Film , Fashion ,Sports & Crime Journalist Up North. Active Since 1971.Retired Bank Officer. Contributed more than 7000 articles worldwide in English, Hindi & Punjabi languages on various topics of interesting & informative nature including people, places, cultures, religions & monuments. Ardent Music lover.

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