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“प्राण सिकंद – खलनायिकी में सिकंदर सिद्ध हुए”

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जगमोहन सिंह बरहोक की कलम से

प्राण सिकंद (जन्म 12 फरवरी 1920 ) किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं लोकप्रिय चरित्र अभिनेता एवं खलनायक के रूप में वर्षों तक हिंदी फिल्मों में उनकी तूती बोलती रही है। हिंदी सिनेमा के इस दिग्गज कलाकार ने अपने करियर की शुरुआत डी.एम. पंचोली द्वारा निर्मित और एस.पी. बख्शी द्वारा निर्देशित “यमला जट” से की थी। इस्माइल और “मलिका-ए-तरन्नुम” नूरजहाँ अन्य कलाकार थे, प्राण ने एक तेजतर्रार युवक की भूमिका निभाई और नूरजहाँ ने एक मध्यमवर्गीय ग्रामीण पिता की एक शालीन बेटी की भूमिका निभाई। फिल्म ने अविभाजित पंजाब की संस्कृति और लोकाचार को पेश किया गया था बॉक्स ऑफिस पर फ़िल्म ने अच्छी कमी कमाई की और आज भी इसे याद किया जाता है प्रसिद्ध ‘अरेबियन नाइट्स’ पर आधारित “गुल-ए-बकावली” में नूरजहाँ को फिर से प्राण के साथ कास्ट किया गया। फ़िल्म के गीत ‘पिंजरे दे विच क़ायद जवानी’ (जंजीरों में कैद जवानी ) और ‘शाला जवानियां माने’ ( युवावस्था के सभी सुखों और आशीर्वाद का आनंद लें) बेहद माबूल मकबूल हुए.

पंचोली की हिट फिल्म “खानदान” (हिंदी) से प्राण सुर्ख़ियों में आये जिसमें नूरजहाँ नायिका थीं। इस फिल्म का निर्देशन शौकत हुसैन रिजवी ने किया था (जिन्होंने बाद में नूरजहाँ से शादी कर ली)। यह शुरुआती सुपर-हिट फिल्मों में से एक थी। विभाजन के बाद के दिनों में प्राण ने खलनायकी की दुनिया में कदम
रखा क्योंकि नाच गाना एवं रोमांटिक आँख मटक्का के उनके बस की बात नहीं थी.

एक बेहतरीन और सफल खलनायक के तौर पर 40 से ज़्यादा वर्षों तक प्राण ने एकछत्र राज किया। खलनायक के तौर पर उनकी उल्लेखनीय और बेहद सराही गई फिल्मों में डी.डी. कश्यप की “हलाकू” (1956), “छलिया” और, “जिस देश में गंगा बहती है” (1960), “कश्मीर की कली” (1964), “शहीद”, “गुमनाम” (1965), “राजकुमार” (1964)’ “राम और श्याम” (1967), राज खोसला की “दो बदन” (1966), “सफ़र” शामिल हैं। (1968) विक्टोरिया नंबर 203, “नन्हा फरिश्ता”, “आदमी”, “जॉनी मेरा नाम”, “जीवन मृत्यु” और मनोज कुमार की “उपकार” (1968)। ‘उपकार’ की अपार सफलता के बाद फिल्म निर्माताओं ने उन्हें चरित्र भूमिकाओं में लेना शुरू कर दिया, हालांकि उन्होंने खलनायक की भूमिकाएं भी जारी रखीं। सावन कुमार टाक की ‘सनम बेवफा’ उनकी आखिरी हिट फिल्म थी।

दिलचस्प बात यह है कि अमरीश पुरी, सदाशिव अमरापुरकर, गुलशन ग्रोवर, परेश रावल, प्रेम चोपड़ा के आगमन के बाद भी प्राण उसी प्रतिष्ठित स्थान पर बने रहे, हालांकि बाद में उम्र बढ़ने पर बलात्कार एवं ज़ोर ज़बरदस्ती वाले दृश्य करने से उन्होने इनकार कर दिया है था। लोगों का मानना है कि प्राण बहुत ही संयमित, उदार और मेहमाननवाज़ व्यक्ति थे। एक समय ऐसा भी था जब लोग अपने बच्चों का नाम राण प्राण रखने से कतराते थे। जब मैं फिल्मालय स्टूडियो में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान दिग्गज अभिनेता से मिला तो उन्होंने अपने बेटे को इंडस्ट्री में आगे बढ़ते देखने की इच्छा जताई। मैंने उनसे विभाजन से पहले नूरजहां के साथ रिलीज हुई उनकी फिल्मों और विभाजन के बाद उनके द्वारा महसूस किए गए बदलावों के बारे में भी सवाल पूछे।

प्रकाश मेहरा की फिल्म “जंजीर” में प्राण ने अहम भूमिका निभाई थी. अमिताभ बच्चन इसी फ़िल्म से सुर्खियों में आए थे। प्राण ने देश विदेश में कई इनाम जीते जिनमें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए 3 फिल्मफेयर पुरस्कार एवं प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार शामिल हैं .12 जुलाई 2013 को उनका निधन हो गया।

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Jagmohan Singh Barhok

Leading Film , Fashion ,Sports & Crime Journalist Up North. Active Since 1971.Retired Bank Officer. Contributed more than 7000 articles worldwide in English, Hindi & Punjabi languages on various topics of interesting & informative nature including people, places, cultures, religions & monuments. Ardent Music lover.

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