जगमोहन सिंह बरहोक की कलम से
‘सपनों के देवता क्या, तुझको करूँ मैं अर्पण
पतझड़ की मैं हूँ छाया, मैं आँसुओं का दर्पण
यही मेरा रूप है यही मेरा रँग है
मेरी ज़िंदगी है क्या, इक कटी पतंग है’
‘आई मैरिड ऐ डेड मैन’ पर आधारित यह फिल्म 29 जनवरी 1971 को रिलीज़ हुई थी फिल्म की नायिका मधु (आशा पारेख ) अपनी शादी के समय घर से भाग जाती है। उसने उस आदमी को देखा नहीं होता जिससे उसकी शायद होनी थी. बाद में उसे जब अपने प्रेमी (प्रेम चोपड़ा ) की हरकतों का पता चलता है तो वह घर लौटती है। चाचा की मौत का पता चलने पर वह शहर छोड़ने का फैसला करती है, स्टेशन के वेटिंग रूम में पूनम ( नाज़ ) और उसके बच्चे से मिलती है, इसके बाद ट्रेन दुर्घटना, उसका बच जाना और बच्चे के साथ पूनम की जगह उसके ससुराल में विधवा बन कर रहने पर सहमत होना ,सफर के दौरान नायक राजेश खन्ना का उसे बचाना आदि कई अविश्वसनीय मोड़ आते हैं और घटनाचक्र कहानी के अनुसार बदलता रहता है जैसा कि अक्सर हिंदी फिल्मों में देखा जाता रहा है.
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उसके ससुर दीनानाथ (नज़ीर हुसैन ) को जब पूनम ( माधवी ) की असलियत की जानकारी होती है तो वह उसे बहू स्वीकार कर लेते है और उसे अपनी संपत्ति का संरक्षक बना देते हैं जो उनके पौत्र को विरासत में मिलने वाली है। लेकिन प्रेम चोपड़ा मधु की तलाश में लगा रहता है. और आखिर उस तक पहुँच जाता है। जायदाद के लालच में वह दीनानाथ की हत्या कर देता है और पूनम को फ़सा देता है. उसे सज़ा हो जाती है उसकी जगह वह अपनी माशूक़ा बिंदु को पूनम के रूप में पेश करता है लेकिन अंत में नायक राजेश खन्ना को,जो माधवी से प्रेम करता है, सच्चाई जान लेता है और दोषी पकड़े जाते हैं यह फिल्म राजेश खन्ना की लगातार हिट फिल्मों की श्रंखला में से एक थी. फ़िल्म में मदन पुरी ने राजेश खन्ना के पिता और नाज़ ने असली पूनम का रोल अभिनीत किया था जो एक रेल दुर्घटना का शिकार बनती है। ‘मेरा नाम शबनम है प्यार से लोग मुझे ‘शब्बो’ कहते हैं’ गाना बिंदु पर क्लब डांसर के तौर पर फिल्माया गया था । फिल्म में युवा हनी ईरानी भी नज़र आती है. सुलोचना, सत्येन कप्पू ,हनी ईरानी , महमूद जूनियर अन्य सितारे थे
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