-जगमोहन सिंह बरहोक की कलम से
आज 5 दिसंबर, 2020 को ‘विश्व सॉइल डे’ मनाया जा रहा है। भारत एक ‘कृषि प्रधान देश’ है। हैरानी की बात है कि किसान एमएसपी और अन्य मुद्दों को लेकर अब भी धरने पर बैठे हैं. सरकार द्वारा कई मांगें मानने के बाद भी आंदोलन लम्बा खिंचता चला जा रहा है और बहती गंगा में कई अन्य लोग भी अपनी रोटियां सेंक रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस आंदोलन में पंजाब के किसान ही अधिक हैं, जिन्हें पड़ोसी राज्यों के कुछ लोगों का भी समर्थन प्राप्त है। परिणाम निकलेगा यह तो पता नहीं लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि ‘कृषि प्रधान देश’ के किसानों ने दशकों से अपने अस्तित्व और अपनी समस्याओं के लिए बहुत संघर्ष/पीड़ा झेली है जिन पर कभी ठीक से ध्यान नहीं दिया गया। जो कुछ हो रहा है वह बेहद चौंकाने वाला और विचारणीय है.

एक किसान की दुर्दशा को 1953 में रिलीज हुई फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ में भी उजागर किया था, जिसमें बलराज साहनी और निरूपा रॉय मुख्य भूमिका में थे. बिमल रॉय द्वारा निर्देशित यह फिल्म रवींद्रनाथ टैगोर की एक कविता ‘दुई बीघा जोमी’ पर आधारित थी। फिल्म एक किसान के इर्द-गिर्द घूमती है जो पैसे कमाने के लिए कलकत्ता जाता है ताकि वह एक साहूकार से कुछ रुपये के ऋण के लिए गिरवी रखी गई ज़मीन का टुकड़ा वापस ले सके। फिल्म में कलकत्ता के एक गाँव और गलियों के दृश्य दिखाए गए हैं जहाँ किसान शंभू रिक्शा चलाकर अपनी आजीविका कमाता है। बलराज साहनी ने बेमिसाल किरदार अभिनीत किया जो प्रशंसा के काबिल था। अपनी गिरवी रखी ज़मीन छुड़ाने के लिए वह दिन रात मेहनत करता है। फिल्म कई मायनों में क्लासिक है। निर्देशक ने बलराज साहनी जैसे ‘अरिस्टोक्रेट छवि’ वाले कलाकार को भूमिका निभाने के लिए तैयार किया , वह किरदार हर सिनेप्रेमी के दिल को छू गया। दूसरी बात, फिल्म 1954 में पहला फिल्मफेयर अवार्ड जीतने वाली फ़िल्म बनी.
फिल्म का अंत देश में मौजूद किसानों की दुर्दशा के अनुरूप था जैसा कि उनके देशव्यापी आंदोलन से स्पष्ट है। किसान शंभू अपनी गिरवी रखी गई जमीन को वापस पाने के लिए आवश्यक राशि कमाने में असफल रहता है साहूकार ज़मीन बेच देता है जिस पर बिल्डर एक बड़ी इमारत खड़ी कर देता है। असहाय किसान शम्भू द्वारा अपनी ज़मीन को हाथ नकलते और उस पर निर्माण होते देखना अत्यंत मार्मिक है जिसके लिए निर्देशल बधाई का पात्र है यह फिल्म एक ‘क्लासिक’ है क्योंकि इसमें 70 साल पहले के वर्तमान परिदृश्य को दर्शाया गया है जो बिमल रॉय के निर्देशन की उत्कृष्टता और दूरदर्शिता को दर्शाता है।आज की तारीख़ में कुछ किसान करोड़ों-अरबों में खेल रहे हैं लेकिन ‘मार्जिनल फारमर्स’ अभी भी दयनीय स्थति में हैं. पंजाब में अधिकतर किसानों की ज़मीन पर दूसरे प्रदेशों से आये लोग खेती -मज़दूरी करते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि मिटटी से ही फल, पौधे, सब्जिआं उगती हैं और मनुष्य का जीवन चलता है। पेड़ – पौधे वातावरण को स्वच्छ बनाने में भी मदद करते हैं. इसलिए धरती या मिटटी को हर चीज़ की जननि कहा जाता है।
