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“सदाबहार अभिनेता देव आनंद”

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-जगमोहन सिंह बरहोक की कलम से

‘नज़रों से कितने तीर चले
चलने दो जिगर पर झेलेंगे
इन प्यार की उजली राहों पर
हम जान की बाज़ी खेलेंगे
इन दो नैनों के सागर में
कोई दिल की नैया डुबोता है
ओ जिया ओ, जिया ओ जिया कुछ बोल दो
अरे ओ, दिल का पर्दा खोल दो’

देवानंद सफल निर्माता निर्देशक चेतन आनंद और विजय आनंद के भाई थे.बैंडिट क्वीन फिल्म से चर्चित निर्देशक शेखर कपूर उनकी बहन के सपुत्र हैं . उनकी अधिकतर फिल्में नवकेतन बैनर तले बनी और सफल हुई . देव आनंद की गिनती हिंदी फ़िल्मों के तीन प्रमुख अभिनेताओं में होती है -अन्य दो हैं दिलीप कुमार और राज कपूर।


देव आनंद ने अपने शुरूआती दौर में गुरु दत्त के साथ संघर्ष किया और सफलता की बुलंदियों को छुआ । फिल्म ‘टैक्सी ड्राइवर’ में कल्पना कार्तिक उनकी नायिका थी जिसके साथ उन्होने शादी की हालाँकि उनका अफेयर सुरैय्या के साथ था जो मुस्लिम थी और इसी वज़ह से उनकी शादी नहीं हो पाई।देव आनंद ने अपने फ़िल्मी सफर की शुरुआत हिन्दू- मुस्लिम एकता पर आधारित फिल्म ‘हम एक हैं’ से की थी जिसमें कमला कोटनिस ,रेहाना और दुर्गा खोटे ने मुख्य भूमिकाएं अभिनीत की थी। उनकी पहिल हिट फिल्म’ज़िद्दी’ (1948) की नायिका कामिनी कौशल थी। 1956 में प्रदर्शित ‘सी.आई. डी.’ में शकीला और वहीदा रेहमान ने मुख्य भूमिकाएं अभिनीत की थीं।


उनकी फिल्मों में उल्लेखनीय हैं -जाल (1952), टैक्सी ड्राइवर (1954), मुनीमजी (1955), पेइंग गेस्ट (1957), काला पानी (1958), काला बाजार (1960), जब प्यार किसी से होता है (1961), हम दोनों (1961), असली-नकली (1962), तेरे घर के सामने (1963) तीन देवियां (1965) ज्वैल थीफ (1967), जांनी मेरा नाम (1970) हरे रामा हरे कृष्णा (1971) और अमीर ग़रीब (1973 ).

‘गाइड’ (1965) देव आनंद की सर्वाधिक चर्चित फिल्म मानी जाती है। आर. के. नारायण के नावेल द गाइड पर आधारित विजय आनंद निर्देशित इस फिल्म में वहीदा रेहमान और किशोर साहू मुख्य किरदार थे. 8 फिल्मफेअर अवार्ड जीतने वाली इस फिल्म ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी काफी सफलता बटोरी थी।फिल्म का संगीत एस. डी. बर्मन ने तैयार किया था। ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’ , ‘गाता रहे मेरा दिल और ‘दिन ढल जाये हाय रात न जाये’ उल्लेखनीय हैं।

‘प्रेम पुजारी’ (1970 ) देव आनंद निर्देशित पहली फिल्म थी जिसकी शूटिंग स्विट्ज़रलैंड और भारत में हुई थी। शत्रुघ्न सिन्हा के यह पहली फिल्म थी जिसमें उन्हें एक पाकिस्तानी फौजी का रोल दिया गया था. शूटिंग के दौरान शत्रुघन सिन्हा भीड़ में खड़े थे .इस फिल्म के बाद उनकी किस्मत बदल गयी. ‘फूलों के रंग से’ और ‘शौखियों में घोला जाए फूलों का शबाब’- फिल्म के चुनिंदा गीत थे .फिल्म में देवानंद ने अभिनेत्री ज़ाहिदा को ब्रेक दिया था. इसके बाद देव आनंद ने ‘शरीफ बदमाश’ में शत्रुघन को रिपीट किया.


‘तेरा मेरा प्यार अमर’, आसमां के नीचे हम आज अपने पीछे , फूलों का तारों का, हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गये, ऐसे तो ना देखो के हमको नशा हो जायेगा, अपना दिल तू आवारा, ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत, लिखा है तेरी आंखों में, तुझे जीवन की डोर से बांध लिया है, छेड़ा मेरा दिल ने तराना तेरे प्यार का, ना तुम हमें जानो, ना हम तुम्हें जाने, सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था, तेरी जुल्फों से जुदाई तो नहीं मांगी थी कैद मांगी थी रिहाई तो नहीं मांगी थी, अपनी तो हर आह एक तूफान है, खोया खोया चांद खिला आसमान, आजा, पंछी अकेला है, सो जा, निंदिया की बेला है , जाएं तो जाएं कहां समझेगा कौन यहां, याद किया दिल ने कहां हो तुम, झूमती बहार है कहाँ हो तुम और ‘ये रात, ये चाँदनी फिर कहाँ सुन जा दिल की दास्तां’ उनकी फिल्मों के कुछ चुनिंदा गीत हैं।


मुझे देव आनंद से दो बार मिलने और घंटों तक बात करने का मौका मिला। उनके भाई विजय आनंद के परिवार के साथ हम लोग बम्बई से गोवा इकट्ठे गए थे.एक दिन पहले क्योंकि एक एयरबस दुर्घटनाग्रस्‍त हो गई थी, इसलिए एयरपोर्ट पर हमें 2-3 घंटे रुकना पड़ा। इस दौरन बात चीत होती रही।


देव आनंद ने 3 फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड हासिल किये। नेशनल अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. दो बार उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में सम्मानित किया गया । भारत सरकार ने उन्हें 2001 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया। वर्ष 2002 में देव आनंद को ‘दादा साहब फाल्के’ पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। उन्होंने छह दशक तक संवाद बोलने के अपने ख़ास अंदाज़, रोमांटिक छवि और ढीले-ढाले पहरावे को कायम रखा और लोकप्रियता हासिल करते रहे जो अंत तक जारी रही। उन्होंने हिंदी सिनेमा की लगभग सभी टॉप अभिनेत्रियों के साथ काम किया। देव आनंद की अधिकतर फ़िल्में मधुर गीतों के लिए जानी जाती हैं।



अफसर ,बाज़ी, काला पानी , काला बाज़ार ,हम दोनों ,ज्वेल थीफ, प्रेम पुजारी, लूटमार बतौर निर्माता उनकी चुनिंदा फ़िल्में हैं उनकी सबसे सफल फिल्म बतौर निर्देशक ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ रही .’चार्जशीट’ (2011 ) मृत्यु से पहले रिलीज़ उनकी अंतिम फिल्म बतौर निर्देशक थी. उनकी ‘चुस्ती फुर्ती’ देखने लायक थी.

प्यार करने वाले अरे प्यार ही करेंगे
जलने वाले चाहे जल जल मरेंगे
दिल से जो धड़के हैं वो दिल हरदम ये कहेंगे
कहीं बीतें न


26 सितंबर 1923 को पंजाब में जन्मे देव आनंद का असली नाम धर्मदेव पिशोरीमल आनंद था। 3 दिसंबर 2011 में हिंदी फिल्मों के इस सदाबहार नायक ने लंदन स्थित होटल ‘मेफेयर’ में अंतिम सांस ली

Jagmohan Singh Barhok

Leading Film , Fashion ,Sports & Crime Journalist Up North. Active Since 1971.Retired Bank Officer. Contributed more than 7000 articles worldwide in English, Hindi & Punjabi languages on various topics of interesting & informative nature including people, places, cultures, religions & monuments. Ardent Music lover.

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