-जगमोहन सिंह बरहोक की कलम से
‘कितने जलवे फ़िज़ाओं में बिखरे मगर
मैने अबतक किसीको पुकरा नहीं
तुमको देखा तो नज़रें ये कहने लगीं
हमको चेहरे से हटना गवारा नहीं
तुम अगर मेरी नज़रों के आगे रहो
मै हर एक शह से नज़रें चुराता रहूँ’
बी. आर. चोपड़ा का नाम सफलता का पर्याय माना जाता है उन्होंने कई सामाजिक और अपराध से सम्बंधित सफ़ल फिल्मों का निर्माण किया जिनमें एक ही रास्ता (1956 ) नया दौर (1957 ), धूल का फूल (1959),कानून (1960 ) वक्त (1965), आदमी और इंसान और इत्तेफाक (1969) शामिल हैं। चोपड़ा साहिब ने 1965 में वक़्त बनायी थी और उसके बाद 1967 में हमराज़ जिसमें सुनील दत्त, विमी और राज कुमार मुख्य कलाकार थे। मैंने 1968 में अपने पहले चंडीगढ़ विज़िट पर एक कजिन के साथ सेक्टर 17 स्थित ‘के सी’ थिएटर में यह फिल्म देखी थी। सुनील दत्त -विमी पर फिल्माया गीत ‘न मुँह छुपा के जियो और न सर झुका के जियो, ग़मों का दौर भी आये तो मुस्कुरा के जियो’ और राज कुमार के साथ फिल्माया गीत ‘नीले गगन के तले धरती का प्यार पले’ बेहद्द लोकप्रिय हुए थे। दूसरे गीत के लिये लिए महेन्द्र कपूर को ‘फिल्म फेयर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
इस फिल्म की नायिका विमी जालंधर के एक सिख परिवार में जन्मी एक बेहद्द खूबसूरत सिख लड़की थी जिसने उस वक़्त काफी सुर्खियां बटोरी और अपनी खूबसूरती के लिये चर्चा का विषय बनी रही। कुछ अन्य फिल्मों में भी अच्छे पारिश्रमिक पर उसे अनुबंधित किया गया जिनमें ‘आबरू’ (1968 ), ‘वचन’ (1974) ) उल्लेखनीय हैं. 1971 में रिलीज़ पंजाबी फिल्म ”नानक नाम जहाज़ है में भी वह पृथ्वीराज कपूर, निशि, सोम दत्त के साथ दिखाई दी। फिल्म ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। उसके बाद विमी का कहीं पता नहीं चला.असफल फिल्में , बेमेल विवाह और वक़्त की मार के चलते वह गुमनामी के अँधेरे में खो गयी। 1977 में उसकी मृत्यु हो गयी। ‘क्रोधी’ (1981) मृत्युपरान्त रिलीज़ विमी की आख़िरी फिल्म थी.
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