जगमोहन सिंह बरहोक की कलम से
भारत एक गरीब देश है इसकी कई मिसालें दी जा सकती हैं हैं – सरकार का कहना है कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मुहय्या करवाया जा रहा है, जिसका मतलब है कि देश में गरीबी चरम सीमा पर है। दूसरी तरफ विश्व कप जीतने वाली टीम के हर खिलाड़ी को 11 करोड़ की राशि देने की घोषणा की गई है. यह राशि इनामी राशि के अतिरिक्त है आप ज़रा दोनों की तुलना कीजिये और खुद ही निर्णय कीजिये की हम कहाँ ख़ड़े हैं। बैंक कर्मचारियों की पेंशन का मामला 1986 से लंबित है इसे भी देखिए और समझिए ताकि वास्तविक तस्वीर स्पष्ट हो सके. कहते हैं पैसे में बड़ी ताकत होती है -सही है- और काफी लोग ऐसा ही समझते हैं. मेरे घर में भी ऐसा ही सभी का विचार है। यह सही है की पैसे के बिन खाया नहीं जा सकता लेकिन यह भी सच है कि पैसा भी आप न खा सकते हैं न साथ ले जा सकते हैं -पैसा एक छलावा है जिसके जाल में सभी उलझे हुए हैं

जिसके पास एक कार है उसे दो की चाहत है ( मुझे छोड़ कर )और दो वाला तीन चाहता है। कुछ लोगों के पास विदेशी कारों की फ्लीट है लेकिन सत्य यह है कि वह भी एक समय में सिर्फ एक ही कार में सफर कर सकता है। घर में भी बिना कार के घूमता है। सैर करने के समय भी कार का प्रयोग नहीं करता। वॉशरूम में भी बिना कार के जाता है. कुछ लोगों के पास हवाई जहाज़ भी हैं जिनके रख रखाव पर काफी धन खर्च होता है लेकिन वे उसका उपयोग तभी करते हैं जब उन्हें किसी दूसरे देश या शहर में जाना होता है। हम भी जब किसी दूसरे देश या शहर में जाते हैं तो जहाज़ में ही जाते हैं और हमारा जहाज़ उनके जहाज़ से कई गुना बड़ा और शानदार होता है. जिस आदमी की हैसियत 20 लाख़ होती है वह अक्सर लड़की की शादी पर 8 -10 लाख़ खर्च कर देता है । जिनके पास पैसे नहीं होते वेकर्ज़ा लेकर शादी करते हैं लेकिन जिस आदमी के पास 1 लाख करोड़ होते हैं ऐसा कभी नहीं सुना कि उसने अपने लड़के या लड़की की शादी पर 60 हज़ार करोड़ खर्च किया हो। वह अधिक से अधिक 500 या 700 करोड़ दिखावा करने के लिये लुटाता है. जब उस आदमी की मौत हो जाती है तो पैसा दूसरे के पास और फिर तीसरे के पास चला जाता है- उसका भरपूर और सही उपयोग कोई नहीं कर पाता पूरा जीवन पैसा इकठ्ठा करने में ही बीत जाता है।
