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“माया महा ठगनी हम जानी”

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-जगमोहन सिंह बरहोक की कलम से

अंग्रेजी में कहावत है Money makes the Mare go ( हिंदी रूप- पैसा घोड़ी को चलाता है ) इसका मतलब यह है कि पैसा सभी को आकर्षित करता है और इसके आकर्षण से कोई बचा नहीं रह सकता. सोने की झनकार बहरे को भी सुनाती देती है. शायद इसीलिए लोग पैसे के पीछे भागते हैं। भारत और चीन से हज़ारों की तादाद में धनी लोग पैसा या टैक्स बचाने के लिए अमरीका और दूसरे देशों की तरफ भाग रहे हैं। क्यों और किस लिए ? जवाब है अधिक पैसा एकत्रित करने के लिये। डॉलर या ब्रिटिश पौंड कमाने के लिए दूसरे देशों में जाने का चलन दशकों पुराना है और आजकल एक व्यापार के रूप में धड़ल्ले से चल रहा है जिसमें कई पक्ष ( सरकारी और गैर- सरकारी ) मोटा मुनाफ़ा कमा रहे हैं. यह सिलसिला अब भी जारी है और आगे भी चलता रहेगा.

बचपन में हमने एक कहानी पढ़ी थी 99 का चक्कर जिसमें बताया गया था की एक गरीब मज़दूर जो मेहनत -मज़दूरी करके दो जून की रोटी खा रहा होता है कैसे अचानक 99 के जाल में फंस गया। आज के दैनिक भास्कर अख़बार में खबर छपी है की गुजरात में अमीरों की गिनती कई गुना बढ़ गयी है और 15 लोगों की नेट वर्थ 10000 करोड़ से लेकर 10 लाख करोड़ के बीच है। अख़बार में हिंदुजा परिवार की खबर भी प्रकाशित हुई है जिन्हें इसलिए सज़ा दी गयी क्योंकि उन्होंने अपने नौकरों का शोषण किया था और जानवरों से भी काम वेतन पर उनसे काम करवाते रहे। इतने धनी परिवार ने ऐसा क्यूँ किया ये अत्यंत विचारणीय है। इसमें संदेह नहीं की पैसा ज़रूरी है लेकिन उसके लिए इतना गिरना कहाँ तक जायज़ है?

यहाँ उल्लेखनीय है कि पैसे का अधिक लोभ या लालसा आदमी को अपराध की तरफ ले जाती है। समाज में ऐसी घटनाएँ रोज़ देखने पड़ने को मिलती हैं.महिलायें भी पैसे के आकर्षण से बची नहीं हैं। महंगे कपड़े और आभूषण की लालसा कई अपराधों का कारण बनी हैं। अधिकतर महिला अपराधों के मूल में सैक्स और पैसा मुख्य कारण होते हैं। पंजाब के मोगा ज़िले में भी एक ऐसा ही काण्ड कुछ वर्ष पूर्व सामने आया था। हर अमीर व्यक्ति कमज़ोर का शोषण करता है जैसा मैंने ऊपर शुरू में उल्लेख किया है। बैंकों के पास अकूत दौलत है लेकिन बैंक भी अपने कर्मचारियों का शोषण करने से पीछे नहीं हटते। बैंक-पेंशनर्स का स्केल -रविज़न दशकों से पेंडिंग है लेकिन हुक्मरान अनुदान राशि ( Ex Gratia ) देकर ही मामला निपटाना चाहते हैं. अमीरों के लाखों करोड़ों के लोन माफ़ किये जाते हैं लेकिन अपने किसी ज़रूरतमंद कर्मचारी का बैंक ने लोन माफ़ किया हो इसकी मिसाल नहीं मिलती जिससे इस पोस्ट की स्वतः ही पुष्टि होती है।

हमारे परिवार में किसी के पास भी कोई बिल्डिंग, बेनामी ज़मीन या पैसा नहीं है। न ही किसी ने कुछ इनहेरिट किया है। जो कुछ थोड़ा बहुत था सारा अपने कमज़ोर सम्बन्धियों पर लुटा दिया। सभी खाली हाथ अपना जीवन -यापन कर चले गए . हमें कभी इनकम- टैक्स या किसी अन्य संस्था से कभी खतरा महसूस नहीं हुआ है उल्टा हमने उन पर दबिश दी है की उन्होंने हमारा हज़ारों का बकाया – ब्याज मिलाकर कम से कम 2 -3 लाख तक का टैक्स नहीं लौटाया है. पैसा इकठ्ठा करने के लिए समाज में जद्दोजहद अभी भी जारी है।

यह सत्य है कि पैसा ज़रूरी वस्तु है और पैसे के बिना हम कुछ खा नहीं सकते लेकिन यह भी सत्य है कि पैसे को भी खाया नहीं जा सकता. पैसा यहीं रह जाता है और मनुष्य दिवंगत हो जाता है। लाखों करोड़ों की बात करना एक छलावा मात्र है. स्पष्टवादिता के लिए क्षमा करें –

Jagmohan Singh Barhok

Leading Film , Fashion ,Sports & Crime Journalist Up North. Active Since 1971.Retired Bank Officer. Contributed more than 7000 articles worldwide in English, Hindi & Punjabi languages on various topics of interesting & informative nature including people, places, cultures, religions & monuments. Ardent Music lover.

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