-जगमोहन सिंह बरहोक की कलम से
कुछ हिन्दी फिल्मों में माँ की भूमिका करने वाली अभिनेत्रियां चर्चित रही हैं इनमें निरुपा रॉय, लीला चिटनीस ,सुलोचना ,ललिता पवार ,वीना ,दुर्गा खोटे प्रमुख हैं. लीला मिश्रा एक ऐसे अभिनेत्री है जो मौसी की अपनी भूमिकाओं के लिए विशेषरूप चर्चित रही है, जेहन में उभरती है और याद की जाती है।

लगभग 200 फिल्मों में काम करने वाली इस अदाकारा की जो फिल्में मुझे अच्छी तरह याद हैं उनमें 1966 की सुनील दत्त – साधना अभिनीत ग़बन , दोस्ती (1964) रात और दिन , राम और श्याम ,बहू बेगम (1967), दुश्मन , अमर प्रेम (1971) शोले , गीत गाता चल, (1975), महबूबा (1976) और 1962 की भोजपुरी फिल्म गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो प्रमुख हैं. तीखी नोकझोंक हमेशा उनकी अदाकारी का मुख्य आकर्षण रही। उन्होंने माँ और चाची के रोल भी किये। शोले फिल्म अधिकतर लोगों को याद होगी जिसमें धर्मेंद्र के साथ झड़प के कई चुटीले सीन उन्होंने किये।

मेरे अपने (1971 ) , परिचय (1972 ) सदमा (1983) प्रेम रोग (1985) ज़ख़्मी औरत (1988 ) मृत्यु से पहले की उनकी कुछ उल्लेखनीय फिल्में हैं जो मुझे याद हैं।
लीला मिश्रा की शादी ज़मींदार राम प्रसाद मिश्रा से हुई थी वह फिल्मों में चरित्र अभिनेता के रोल किया करते थे। यह उन दिनों की बात है जब फिल्मों में मध्यम वर्ग की स्त्रियों का काम करना अच्छा नहीं समझा जाता था फलतः उनके पति के वेतन से उन्हें तीन गुना अधिक पारिश्रमिक मिलता था। केदार शर्मा की महताब-भारत भूषण अभिनीत फ़िल्मचित्रलेखा(1941 ) और म्यूजिकल हिट अनमोल घड़ी (1946 )उनकी प्रारंभिक फिल्में हैं। इसके बाद आवारा (1951) और लाजवंती (1958), में वह दिखाई दीं। रोमांटिक सीन करने से उन्होंने हमेशा परहेज़ किया। फिल्मों में अभिनीत उनकी तीखी नोक झोंक भरे दृश्य मुझे अभी भी याद हैं. बतौर मौसी उनकी छवि हमेशा एक दबंग इस्त्री की रही।फिल्म नानी माँ (1980 ) के लिए 73 वर्ष की उम्र में उन्होंने बेस्ट एक्ट्रेस का पुरस्कार जीता।
