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” चार साहिबज़ादों की स्मृति में शहीदी सप्ताह”

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-जगमोहन सिंह बरहोक की कलम से

20 दिसंबर 1704 को ( पोह माह की ठंडी रात ) श्री गुरु गोविन्द सिंह ने अपनी माता, सम्बन्धियों और कुछ सिख सैनिकों के साथ आनंदपुर साहिब से रोपड़ की तरफ प्रस्थान किया। 20-21 दिसंबर की मध्यरात्रि को, मुगलों ने सरसा नदी के निकट उनके काफ़िले पर आक्रमण कर दिया। गुरु का परिवार बिखर गया। उस स्थान पर आज गुरुद्वारा परिवार विछोड़ा स्थित है। गुरु गोबिंद सिंह जी दो बड़े साहिबजादों, पंज प्यारों ( गुरु जी के 5 प्रिय सिक्ख ) और अन्य 40 सिक्खों के साथ रात को यात्रा करते हुए 21 दिसंबर की दोपहर को चमकौर साहिब पहुँचे।

22 दिसंबर को मुठी भर खालसा फौज और मुग़लों की विशाल सेना के बीच ‘चमकौर की प्रसिद्ध लड़ाई’ लड़ी गई जिसमें दोनों बड़े साहिबज़ादों -अजीत सिंह और जुझार सिंह ( उम्र 18 और 14 वर्ष ) ने मुग़लिया फ़ौज़ के छक्के छुड़ाते हुए शहादत प्राप्त की। इस युद्ध में तीन पंज प्यारों और 40 सिखों ने भी लड़ते हुए शहीदी प्राप्त की और अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। गुरु जी इस दौरान बच निकले लेकिन युद्ध के दौरान छोटे साहिबज़ादे जोरावार सिंह, फ़तेह सिंह और उनकी दादी माता गुजरी बिछड़ गए जिन्हें एक नौकर गंगू जो कि कश्मीरी पंडित था, धोखा देकर अपने घर ले गया जहाँ उन्हें मुग़लों ने बंदी बना लिया।

तीनों को पोह माह की रात में में खुले टॉवर ( ठंडा बुर्ज ) में बंदी बनाकर रखा गया। अगले दिन वहां के शासक वज़ीर खान ने साहिबजादों को इस्लाम धर्म अपनाने पर विवश किया लेकिन उसका आग्रह क्रमशः 7 और 9 वर्ष के बालकों ने ठुकरा दिया। उनका साहस और दृढ़ निश्चय देखकर वज़ीर खान आग बबूला हो गया। उसने बच्चों को जिन्दा दफ़न करने का फरमान जारी कर दिया। 27 दिसंबर 1704 को दोनों छोटे साहिबजादों को जिन्दा ईंटों की दीवार में दफ़न कर दिया गया। दादी बच्चों का दुख नहीं देख सकी और उसने भी संसार को अलविदा कह दिया।उस स्थान पर आज गुरुद्वारा ज्योति स्वरूप स्थित है.

पंजाब में कई परिवार छोटे साहिबज़ादों की याद में 21 से 27 दिसम्बर को फर्श पर सोते हैं। इन दिनों वहां अत्यधिक भीड़ के कारण जा पाना हर आदमी के लिए संभव नहीं होता इसलिए अधिकतर लोग पहले दिन 21 दिसंबर को ही दर्शन हेतु वहां पहुँच कर श्रदांजलि भेंट कर आते हैं। मेरे परिवार के सदस्य भी आज सुबह फतेहगढ़ साहिब गए थे और शाम को लौटे हैं। । मेरी पत्नी अक्सर वहां जाया करती है.

चार साहबज़ादों की याद में इस वर्ष भी 26 दिसंबर का दिन वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। टोडरमल ने बच्चों के संस्कार हेतु भारी कीमत चुका कर दो गज़ ज़मीन का टुकड़ा दिया था इसलिए उसका नाम भी इस शहादत के साथ जुड़कर अमर हो गया गया है।

गुरुद्वारा कतल गढ़ साहिब चमकौर में स्थित है और दोनों बड़े साहिबज़ादों को समर्पित हैं। इस जगह के आस-पास 1704 में ऐतिहासिक चमकौर का युद्ध लड़ा गया था। दो साहिबजादों के साथ, पंज प्यारों में से तीन- भाई मोहकम सिंह, हिम्मत सिंह और भाई साहिब सिंह ने कुछ अन्य सिखों के साथ इस जग़ह शहीदी का अमृत पिया था।

मुस्लिम कवि और विद्वान् अल्लाह यार ख़ां जोगी ने साहिबज़ादों की शहादत को कुछ इस तरह शब्दों में पिरोया है:

हम जान दे के औरौं की जानें बचा चले ।
सिक्खी की नींव हम हैं सरों पर उठा चले ।
गुर्याई का हैं किस्सा जहां में बना चले ।
सिंघों की सलतनत का हैं पौदा लगा चले ।
गद्दी से ताज-ओ-तख़त बस अब कौम पाएगी ।
दुनिया से ज़ालिमों का निशां तक मिटाएगी ।

ठोडी तक ईंटें चुन दी गईं मूंह तक आ गईं ।
बीनी को ढांपते ही वुह आंखों पि छा गईं ।
हर चांद सी जबीन को घन सा लगा गईं ।
लख़त-ए-जिगर गुरू के वुह दोनों छुपा गईं ।
जोगी जी इस के बाद हुई थोड़ी देर थी ।
बसती, सरहिन्द शहर की, ईंटों का ढेर थी ।
(जबीन:माथा, घन:ग्रहण, लख़त-ऐ-जिगर:
जिगर के टुकड़े)

Jagmohan Singh Barhok

Leading Film , Fashion ,Sports & Crime Journalist Up North. Active Since 1971.Retired Bank Officer. Contributed more than 7000 articles worldwide in English, Hindi & Punjabi languages on various topics of interesting & informative nature including people, places, cultures, religions & monuments. Ardent Music lover.

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