-जगमोहन सिंह बरहोक की कलम से
गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी में हुआ था। देश के बटवारे के बाद यह स्थान अब पाकिस्तान के शेखूपुरा जिले में स्थित है और , ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है
गुरु नानक जयंती, अथवा प्रकाश उत्सव पहले सिख गुरु, श्री गुरु नानक देव के जन्म दिन के उपलक्ष्य में इस साल 27 नवंबर को मनाया जाएगा यह सिख धर्म के सबसे पवित्र त्यौहारों में से एक है। उन्होंने अपने ज्ञान ,चिन्तन आध्यात्मिक बोध से सिख धर्म को दिशा दी जिसके फलस्वरूप दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह ने एक नए धर्म की स्थापना की। अन्य सिख गुरुओं ने इसे समृद्ध किया। गुरु नानक जयंती के दिन प्रार्थना जुलूस, कीर्तन , मिष्ठान वितरण एवं सभी गुरुद्वारों में लंगर का आयोजन किया जाता है जिसमे सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं.

गुरुपर्व से एक दिन पहले नगरकीर्तन के रूप में एक जुलूस का आयोजन किया जाता है। इस जुलूस का नेतृत्व #पंज प्यारे (पांच प्यारे) करते हैं जिनके हाथ में निशान साहिब होता है. जुलूस शहर के विभिन्न हिस्सों और गुरुद्वारों से मुख्य गुरूद्वारे पर समाप्त होता है। जगह जगह पंडाल लगाए जाते हैं और सभी लोगों को मिठाई ,चाय , कड़ाह प्रसाद , कोल्ड ड्रिंक एवं अन्य वस्तुएं सर्व की जाती हैं.
मोहाली (पंजाब) स्थित गुरुद्वारा सिंह शहीदां में गज़ब का उत्साह होता है. श्रद्धालुओं को जूस, आइसक्रीम,फल से लेकर ड्राई फ्रूट तक सर्व किये जाते हैं। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक धुनें बजाने वाले ब्रास बैंड, और हैरतअंगेज़ मार्शल आर्ट का प्रदर्शन करने वाले सिख नौजवान आकर्षण का मुख्य केंद्र रहते हैं. फूलों से सजी पालकी देखने लायक होती है. गोल्डन टेम्पल का दृश्य अत्यंत मनोहारी होता है और लाखों की संख्या में देश विदेश से श्रद्धालु गुरु की नगरी अमृतसर पहुंचते हैं।

गुरु ग्रंथ साहिब के मुख्य छंदों में विस्तार से बताया गया है कि ब्रह्मांड का निर्माता एक है वही सभी की रक्षा करता है। गुरुनानक की रचनाएं , उनके छंद मानवता, भाईचारे ,सभी की समृद्धि और सामाजिक न्याय के प्रेरणा सूत्र हैं जो निस्वार्थ सेवा को प्रमुखता देते हैं. गुरुग्रंथ साहिब दुनिया का एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है जिसमे छोटे से छोटे व्यक्ति को भी स्थान दिया गया है और उसका गुणगान किया गया है. संत रवि दास ,बाल्मीकि कबीर और तुलसी सहित दर्जनों सज्जनों के कृत्यों का ज़िक्र और सराहना विस्तार से की गयी
1969 में गुरु नानक देव जी के जन्मदिन की 500वीं वर्षगांठ मनाई गयी थी। इस अवसर पर पूरे विश्व में समागम हुए थे।
गुरु नानक देव जी सभी धर्मों का आदर करते थे। उनके दो शिष्यों में बाला और मरदाना प्रमुख थे. उन्होंने विभिन्न देशों की लम्बी यात्राएं की और मक्का मदीना तक लोगों को सन्देश दिए और प्रभावित किया. मक्का यात्रा के दौरान गुरु नानक देव एक जगह सो रहे थे। एक मुस्लिम बाशिंदे ने कहा की उनके पैर मस्जिद की तरफ हैं। गुरु साहिबान ने कहा मेरे पैर दूसरी तरफ घुमा दो। उसके बाद उस शख्स ने जब पीछे मुड़ कर देखा तो मस्जिद गायब थी। मस्जिद गुरु साहिबान के पैरों के तरफ घूम गयी थी। दो तीन बार कोशिश करने के बाद वह शख्स गुरु साहिब के पावों पर पड़ गया।यहाँ उल्लेखनीय है की उस वक़्त सिख धरम अस्तित्व में नहीं था न ही सिख लेखक थे. यह किस्सा गुरु साहिब के एक चेले और उस मुस्लिम शख्स ने वर्णित किया था.
रीठे के पेड़ के नीचे जब गुरु साहिबान ने समाधि लगायी तो पेड़ मीठे फल देने लगा। उस स्थान पर गुरुद्वारा रीठा साहिब अब भी मौजूद है. गुरुद्वारा पंजा साहिब (अब पकिस्तान में ) उनके चमत्कार का दूसरा उदाहरण है. गुरु नानक देव जी ने जो बात कही वह ‘सरबत के भले’ के लिए कही अपने लिए कुछ नहीं मांगा। उन्होंने किरत करनी और वंड छकना का सन्देश दिया। ‘नानक नाम चढ़दी कला तेरे भाणे सरबत का भला’, ‘तेरा भाणा मीठा लागे ‘ और ‘नानक दुखिया सब संसार’ जैसे शब्दों से लोगों को सन्देश देने की कोशिश की।
